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Thursday, March 17, 2016

धरोहर-सुदीप भोला

धरोहर(मेरी पहली गद्य कविता)
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-सुदीप भोला
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 एक दिन कबीर बाबा ,मीरा बाई, तुलसी दास, रहीम और सूर दास
भारत में हिंदी साहित्य की दशा का अवलोकन करने स्वर्ग से धरती पर आये...
एक बड़े महानगर पर फुटपाथ पर किताबें बेचता हुआ एक बालक देख चकराए

कबीर दास ने झट से एक पुस्तक मधुशाला उठाई
लड़के ने उसे आँख दिखाई
और किताब छिनते हुये बोला
नीचे रख दो किताब बड़ा आया पढने वाला
ये उम्र और मधुशाला
कबीर तो रहे फकीरे मुस्कुरा के गम खा गये
मगर रहीम तैश में आ गए
क्यूं रे बेचता साहित्य है पर संस्कार भी फुटपाथ पर ही फेंक दिए क्या?
किताब वाला तुरंत बोला ओये भिखारी
जल्दी निकल नही तो तुझे भी फेक सकता हूँ
तभी सूरदास बोले वाह मैं भारत में साहित्य की दशा साफ़ साफ़ देख सकरा हूँ
तुलसी दास ने उन्हें तुरंत समझाया
और किताब वाले से पूंछा भाई यहाँ को
पुस्तकालय है क्या आसपास
जहा मिल जाये हमें भारतीय साहित्य का वर्तमान और इतिहास
बच्चे ने फ़ौरन सामने हिंदी भवन की और ऊँगली उठाई
बिल्डिंग को देखते ही मीरा बाई चकराई
हे मेरे माधव हे मेरे श्याम ....
हिंदी की उन्नति में कितना बड़ा इंतजाम
कहते हुए प्रसन्नचित्त सभी बढ़ चके हिंदी भवन की ओर
तभी द्वार पर खड़े चौकीदार दार ने उन्हें रोका
ऐ ... गरीबी रेखा के राशन कार्ड
किधर जाता है
यहाँ हर कोई खुद को सूर कबीर कहता हुआ घुसा चला आता है...
ख़ुशी के मारे सूरदास उछल पड़े
हाँ हाँ भाई मैं सूर ये रहीम ये तुलसी ये कबीर
आपने हमें ठीक पहचाना मेरे भाई
चौकीदार बीच मैं ही बोला वाह अब ये भी बोल दो की ये मैडम भी है मीरा बाई
सारे महाकवि भौचक्क थे
चेहरे पर हवाहवाई थी
अभी जब द्वारचार पर ऐसा स्वागत तो आगे तो और लड़ाई थी...!!!
खैर झेपते हुए बोले भाई यहाँ कोई पुस्तकालय हो तो बताइए
चौकीदार बोलो पहले बीडी पिलाइए
भाई बीडी क्या बला है हम नही जानते
पर एक बात बताओ क्या इसी भवन में हिंदी सहित्य का वास है
चौकी दार बोला जल्दी से निकल लो बिना इज़ाज़त अन्दर जाने पर 6 महीने का कठोर कारावास है
कवि घबराए
वहां से निकलती हुई एक बड़ी गाडी में एक बेहद शानदार व्यक्ति रेशम का कुरता सोने का चश्मा लगाये बैठा था
मीरा समझी हो न हो इस महल का मालिक यही आदमी है
उसने तपाक से उस आदमी से पूछा माफ़ कीजियेगा क्या आप यहाँ रहते है?
जी नही हम तो हिंदी प्रेमियों के दिलो में बसते है
वैसे लोग हमे महाकवि कहते हैं!!!
हाय हाय कितना ख्याल रखा है इस देश ने कवियों का ,
पलकों पर रखा होगा तब तो आपने हिंदी साहित्य,
और न जाने कितना आगे पहुँच गया होगा देवनागरी का मान सम्मान
गाड़ी में बैठा महाकवि चकराया
ये देवनागिरी क्या किसी कवियित्री का नाम है...
अच्छा चलो हटो मुझे बहुत ज़रूरी काम है
सूर बोले महांकवि ठीक है आप जाइये
किन्तु जाने के पहले अपने साहितय की कुछ तो पंक्तियाँ सुनाइए
महाकवि जोर से अट्टहास करते हुए बोला
फ़िल्में नही देखते क्या
या fm नही सुनते
मेरा एक एक गीत लोगों की जुबां पर छाया है
ये चिकनी चमेली और लुंगी डांस अपना ही बनाया है
इतना कह कर गाड़ी आगे बढ़ी
मीरा फिर चकराई खड़ी खड़ी.. .
चौकीदार से विनम्र आग्रह किया
की जन जन के मन पर छाये इन वर्तमान साहित्य की प्राप्ति का तरीका बताये
चौकीदार ने मोबाईल का हेडफोन उनके कान में लगाकर कहा लीजिये
तुरंत आराम पाए
गाने शुरू हुए
एक एक कर सबने सुने
बारी बारी अपने सिर धुनें
शर्मिंदगी से भरे एक दुसरे से नजरें नही मिला पा रहे थे
वापस स्वर्ग की और जा रहे थे
तभी सामने से दो अंधे भिखारी जो तुलसी की चौपाई और कबीर के दोहे गाते हुए आ रहे थे
उन्हे देख ठिठके दोनों भिखारियों ने उन्हें प्रणाम किया
कबीर ने अपनी चादर
और मीरा ने उनहे अपना एक तारा देते हुए हिंदी साहित्य में एक बार फिर अपना योगदान दिया...
सुदीप भोला

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